'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती अनामिका घटक की कविता। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
इस सूने कमरे में है बस
मैं और मेरी तन्हाई
दीवारों का रंग पड गया फीका
थक गयी ऑंखें पर वो न आयी
छवि जो उसकी दिल में समाया
दीवारों पर टांग दिया
तू नहीं पर तेरी छवि से ही
टूटे मन को बहला लिया
पर क्या करूँ इस अकेलेपन का
बूँद-बूँद मन को रिसता है
उस मन को भी न तज पाऊँ मैं
जिस मन में वो छब बसता है
शायद वो आ जाए एक दिन
एकाकी घर संवर जाए
इस निस्संग एकाकीपन को
साथ कभी तेरा मिल जाए
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नाम:अनामिका घटक
जन्मतिथि : २७-१२-१९७०
जन्मस्थान :वाराणसी
कर्मस्थान: नॉएडा
व्यवसाय : अर्द्धसरकारी संस्थान में कार्यरत
शौक: साहित्य चर्चा , लेखन और शास्त्रीय संगीत में गहन रूचि.
7 टिप्पणियां:
bahut hi badhiyaa
वो आये तो घर संवर जाए ...
सुन्दर !
सुन्दर प्रस्तुति।
तन्हाई पर सुंदर प्रस्तुति.
एकाकीपन को भाव सुन्दर शब्दों मे। धन्यवाद इसे पडःावाने के लिये।
तन्हाई तो मुझे अच्छी लगती है, सो यह रचना भी..बधाई.
beautiful poem,
nice post.
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