'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज रिश्तों में दुनिया की निगाहों के प्रति सचेत करती सुमन 'मीत' जी की एक कविता 'तुम्हें बदलना होगा'. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
जीवन की राहें
बहुत हैं पथरीली
तुम्हें गिर कर
फिर संभलना होगा ।
भ्रम की बाहें
बहुत हैं हठीली
छोड़ बन्धनों को
कुछ कर गुजरना होगा ।
दुनिया की निगाहें
बहुत हैं नोकीली
तुम्हें बचकर
आगे बढ़ना होगा ।
रिश्तों की हवाएँ
बहुत हैं जकड़ीली
छोड़ तृष्णा को
मुक्त हो जाना होगा ।
ऐ ‘मन’
तुम्हें बदलना होगा
बदलना होगा
बदलना होगा !!
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12 टिप्पणियां:
रिश्तों की हवाएँ
बहुत हैं जकड़ीली
छोड़ तृष्णा को
मुक्त हो जाना होगा ।
बहुत सुन्दर जीनी का राह दिखाती कविता। सुमन जी को बधाई। आपका धन्यवाद।
सुन्दर रचना!
--
मंगलवार के साप्ताहिक काव्य मंच पर इसकी चर्चा लगा दी है!
http://charchamanch.blogspot.com/
sundar rachna badhai suman ji
सुमन मीत जी की यह कविता अच्छी और भाव पूर्ण लगी|बधाई
आशा
bahut sundar!
उम्दा रचना
इस रचना को पसन्द करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया...
nice
ऐ ‘मन’
तुम्हें बदलना होगा
बदलना होगा
बदलना होगा !!
...खूबसूरत अभिव्यक्ति..बधाई !!
@ मयंक जी,
चर्चा के लिए आभार !!
दुनिया की निगाहें
बहुत हैं नोकीली
तुम्हें बचकर
आगे बढ़ना होगा ।
...अच्छा चेताया जी...खूबसूरत गीत..बधाई.
"ye man tuhe badalna hoga." achhi racana hai, badhai aapko. dr somnath yadav bilaspur c.g.
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