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सोमवार, 30 अगस्त 2010

प्रेम - गीत

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी का एक प्रेम-गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

भाग्य निज पल-पल सराहूँ,
जीत तुमसे, मीत हारूँ.
अंक में सर धर तुम्हारे,
एक टक तुमको निहारूँ.....

नयन उन्मीलित, अधर कम्पित,
कहें अनकही गाथा.
तप्त अधरों की छुअन ने,
किया मन को सरगमाथा.
दीप-शिख बन मैं प्रिये!
नीराजना तेरी उतारूँ...

हुआ किंशुक-कुसुम सा तन,
मदिर महुआ मन हुआ है.
विदेहित है देह त्रिभुवन,
मन मुखर काकातुआ है.
अछूते प्रतिबिम्ब की,
अँजुरी अनूठी विहँस वारूँ...

बाँह में ले बाँह, पूरी
चाह कर ले, दाह तेरी.
थाह पाकर भी न पाये,
तपे शीतल छाँह तेरी.
विरह का हर पल युगों सा,
गुजारा, उसको बिसारूँ...

बजे नूपुर, खनक कँगना,
कहे छूटा आज अँगना.
देहरी तज देह री! रँग जा,
पिया को आज रँग ना.
हुआ फागुन, सरस सावन,
पी कहाँ, पी कँह? पुकारूँ...

पंचशर साधे निहत्थे पर,
कुसुम आयुध चला, चल.
थाम लूँ न फिसल जाए,
हाथ से यह मनचला पल.
चाँदनी अनुगामिनी बन.
चाँद वसुधा पर उतारूँ...
************************************************************************************
(आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के जीवन-परिचय के लिए क्लिक करें)

8 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत प्यारा गीत ....

हुआ किंशुक-कुसुम सा तन,
मदिर महुआ मन हुआ है.
विदेहित है देह त्रिभुवन,
मन मुखर काकातुआ है.
अछूते प्रतिबिम्ब की,
अँजुरी अनूठी विहँस वारूँ

अद्भुत पंक्तियाँ ..
.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति के साथ.... मनभावन पोस्ट...

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत लिखा...बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

सशक्त रचना..बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

सशक्त रचना..बधाई.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

बजे नूपुर, खनक कँगना,
कहे छूटा आज अँगना.
देहरी तज देह री! रँग जा,
पिया को आज रँग ना.
हुआ फागुन, सरस सावन,
पी कहाँ, पी कँह? पुकारूँ...
दिल को छूता है यह प्रेम-गीत...शुभकामनायें.

KK Yadav ने कहा…

बहुत खूबसूरती से गीत को पिरोया...उत्तम प्रस्तुति..बधाई.

Shyama ने कहा…

सुन्दर गीत. सलिल जी को बधाई.